Rain Water Harvesting: Minor Irrigation Department

Uttarakhand at a Glance

Area:53,483 sq.km.
Population: 100.86 lakh
Capital: Dehradun(Temporary)
Districts: 13
Literacy Rate: 78.80%
Latitude: 28°43' N to 31°27' N
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Districts

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Rain Water Harvesting

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   भू-जल संभरण एवं वर्षा जल संरक्षण।



   उत्तराखंड राज्य में लगातार भूगर्भीय जल के बढ़ते उपयोग एवं उनके अनियोजित दोहन होने तथा प्र्याप्त सम्भरण (Recharge) न होने के कारण भूगर्भीय जल स्तर का लगातार हास्र हो रहा है। राज्य के 13 जिलों में से 11 जिलों का अधिकांष भूभाग पर्वतीय है। वहां पर भी नदी नालों एवं श्रोतों पर लगातार पेयजल एवं सिंचाई आदि की योजनाएं बनायी जा रही है तथा श्रोतों के (Recharge) लिए कोई योजना न होने के कारण श्रोतों के श्राव में कमी देखी जा रही है एवं कतिपय श्रोतों के सूखने की सूचना है। राज्य के औद्योगिकीकरण की बढ़ती सम्भवनाओं को देखते हुए भविष्य में भूगर्भीय जल के प्रदूषित होने को भी सम्भावना है। यहां जल की प्रचूरता होने के बावजूद पेयजल एवं सिंचाई आदि के लिए पानी की हमेशा कमी रही है। भूगर्भीय जल के स्तर में गिरावट तथा पर्वतीय जनपदों के नदी, नालों एवं श्रोतों के श्राव में कमी को दूर करने के लिए प्रदूषण को नियन्त्रित करने, पेयजल, सिंचाई तथा उद्योग आदि के लिए पानी का सुनियोजित उपयोग आवश्यक है।



भू-जल संभरण एवं वर्षा जल संरक्षण भू-जल संभरण एवं वर्षा जल संरक्षण भू-जल संभरण एवं वर्षा जल संरक्षण भू-जल संभरण एवं वर्षा जल संरक्षण

उत्तराखंड राज्य के गठन से पूर्व पूर्ववर्ती राज्य उत्तर-प्रदेश में ‘‘भूगर्भ जल विभाग‘‘ पृथक रूप से अस्तित्व में था। उत्तरांचल राज्य के मैदानी क्षेत्रों की भूमिगत जल सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति इस विभाग द्वारा की जाती थी। इसके लिए मैदानी क्षेत्रों में कई भू-जलस्तर मापक यन्त्र/स्थल तथा वर्षा जल मापक यन्त्र/स्थल स्थापित है, जिनसे आंकड़े एकत्रित कर उपयोग किये जाते हैं। उत्तरांचल राज्य अस्तित्व में आने के बाद इस कार्य हेतु कोई संस्था/विभाग नहीं रह गया था तथा उत्तर प्रदेश द्वारा भी उत्तरांचल क्षेत्र में भूगर्भ जल सम्बन्धी कार्य छोड़ दिया गया है, जिसकमे कारण भूमिगत जल सम्बन्धी आंकडे वर्तमान में उपलब्ध नहीं हो पा रहे है। वैसे भी उत्तर प्रदेश द्वारा स्थापित स्थल अच्छे आंकड़ों के लिए प्र्याप्त नहीं थे, जिसके लिए अतिरिक्त स्टेशन लगाये जाने एवं कर्मचारी लगाये जाने की आवश्यकता होगी। उत्तरांचल के मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों जहां पर नदी नालों एवं श्रोतों के श्राव लगातार कम होते जा रहे हैं, के आंकड़े एकत्र करने के बारे में पूर्व में भी कोई व्यवस्था नहीं थी। समय आ गया है कि उन क्षेत्रों के जलश्राव के हास्र के कारणों को ज्ञात किया जाये। जगह-जगह पर श्रोतों को चिन्हित कर उसके श्राव का मापन किया जाये तथा तुलनात्मक अध्ययन कर निष्कर्ष कर पहुंचा जाये। नदी नालों पर पेड़ झाडियों से पानी को कृत्रिम रूप से रोकने, तथा चाल खाल को संरक्षित करने की जानकारी जनता को बखूबी थी। वर्तमान में यह प्रवृत्ति समाप्त होती जा रही है। चाल खाल नष्ट होते जा रहे हैं। नदी नालों के बहाव को जगह-जगह पर रोककर त्मबींतहम करने की कोई व्यवस्था नहीं रह गयी थी। ऐसे में यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम आंकडे एकत्रित कराये जायें तथा निर्माण डिजाइन के अनुसार किया जाये। वर्तमान परिदृश्य में भूमिगत जल का सही एवं सम्पूर्ण आंकलन करने, भूमि उपयोग की समस्त जानकारी करने, सिंचित/असिंचित भूमि के आंकलन करने, आदर्श योजना स्थल का चयन करने की दृष्टि से बिना Remote Sensing एवं GIS तकनीकी के भूगर्भ जल विभाग की कल्पना अर्थहीन है। भूगर्भ जल के सम्पूर्ण कार्य को करने एवं त्मबींतहम योजनाओं के क्रियान्वयन की दृष्टि निम्न कार्य करने होंगे।



Rain Water Harvesting
Reference By:www.ceeindia.org

Source : Minor Irrigation Department, Uttarakhand , Last Updated on 01-04-2024