Minor Irrigation Works: Minor Irrigation Department

Uttarakhand at a Glance

Area:53,483 sq.km.
Population: 100.86 lakh
Capital: Dehradun(Temporary)
Districts: 13
Literacy Rate: 78.80%
Latitude: 28°43' N to 31°27' N
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Districts

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Minor Irrigation Works

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   लघु सिंचाई कार्यों की प्रकृति

लघु सिंचाई विभाग द्वारा समस्त जनपदों में निम्न प्रकार कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न करायें जा रहें हैं, यह साधन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-

   1.सतही जल आधारित साधन
   2.भू-गर्भीय जल आधारित साधन नलकूप/आर्टिजन
   मैदानी क्षेत्र में:-

सतही जल आधारित छोटे-बड़े बारहमासी नाले अथवा तालाब आदि पर विद्युत मोटर अथवा डीजल पम्प सेट लगाकर पानी उठाया जाता है तथा खेतों की सीधे तौर पर सिंचाई की जाती है।

   पर्वतीय क्षेत्र में:-

गूल निर्माण:-

चयनित ग्रामों में कृषि भूमि की सिंचाई व्यवस्था हेतु ग्राम/मजरा के समीप, यदि बारहमासी नदी/नाला अथवा जलश्रोत उपलब्ध है तथा उसमें प्रस्तावित भूमि के क्षेत्रफल को सींचने हेतु पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध है, तो उपलब्ध जल धारा को परिवर्तित (डायवर्ट) करके गूल/नहर द्वारा कृषि भूमि तक लाया जाता है। गूल निर्माण से पूर्व श्रोत से कृषि भूमि तक सर्वेक्षण एवं रेखांकन कर गूल का डिजाइन निर्धारित किया जाता है तत्पश्चात निर्धारित रेखाकंन पर निर्माण कार्य किया जाता है। जल श्रोत पर पानी की उपलब्धता एवं उपलब्ध कमाण्ड एरिया के अनुपात को ध्यान में रखते हुए गूल का साइज/सैंक्शन इस प्रकार निर्धारित किया जाता है कि कम से कम लागत c अधिक से अधिक सिंचाई की सुविधा कृषकों को प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह संरचनायें सीमेंट कंक्रीट/पत्थर/ईंट से तैयार की जा रही है, निर्माण में प्रयुक्त, सामग्री, सीमेंट एवं ईंट को छोड़कर प्रायः ग्रामों के समीप ही उपलब्ध हो जाती है। श्रमिक व मिस्त्री को ग्राम या समीपवर्ती क्षेत्र से ही लेने हेतु प्राथमिकता दी जाती है, ताकि ग्रामीणों को ग्राम के अन्दर ही रोजगार उपलब्ध हो जाये, योजना का निर्माण जल उपभोक्ता समूह का गठन ग्राम सभा के प्रस्ताव पर उनकी सहभागिता से कराया जाता है, ताकि भविष्य में तैयार सरंचनाओं की मरम्मत व देखरेख का उत्तरदायित्व ग्राम सभा तथा उपभोक्ता समूह सुचारू रूप से कर सके।

गूल निर्माण गूल निर्माण गूल निर्माण गूल निर्माण

    सिंचाई हौज निर्माण/(पक्का टैंक) कार्य:-

जिन श्रोतों पर जल बहाव क्षमता प्रायः कम है, और उसके समीप अथवा कुछ दूरी पर कृषि भूमि उपलब्ध है, तो उस कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पक्के सिंचाई हौज का निर्माण किया जाता है। ग्रामीणों के समूहों की कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु इन पक्के सिंचाई हौजों का निर्माण विभिन्न आकार व प्रकार में क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए किया जा रहा है, हौज का डिजाइन इस प्रकार निर्धारित किया जाता है कि उपलब्ध जल श्रोत से लिए गए पानी से हौज 12 घंटे से 24 घंटे के अन्दर पूर्णतया भर जायें, ताकि कृषक इसका उपयोग बारी-बारी से अपनी कृषि भूमि की सिंचाई करने में कर सकें।
श्रोत से हौज तक उपलब्ध जल के अनुसार छोटी साइज की गूल या पाइप द्वारा जोड़ा जा सकता है। इन हौजों के निर्माण में ग्रामीणों की सहभागिता प्राप्त की जा रही है, ताकि भविष्य में इनका समुचित रखरखाव सुनिश्चित किया जा सके। प्रायः उपलब्ध होने पर श्रमिक ग्राम से ही लिए जा रहें हैं, ताकि रोजगार ग्राम में ही उपलब्ध कराया जा सके।

सिंचाई हौज निर्माण सिंचाई हौज निर्माण सिंचाई हौज निर्माण

    वियर (छोटे बैराज):-

ऐसे स्थान जहां पर प्राकृतिक बारहमासी स्रोत (perennial Source)है, उनका पानी रोक कर तथा उसका स्तर ऊँचा करने से सिंचाई उपलब्ध हो जाती है, परन्तु स्थाई रूप से इसका स्तर ऊँचा करने पर ऊपर के खेतों के लिए वर्षा ऋतु में वाटर लागिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे निपटने के लिए गेटेड स्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है। यह योजना काफी लाभप्रद सिद्ध हुई है।

छोटे बैराज छोटे बैराज

    हाईड्रम स्थापना:-

पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक बहते हुए नदी, नाले, तालाब और झरने सिचांई के मुख्य साधन है। इन प्राकृतिक श्रोतों से ऊंचाई पर स्थित खेतों तक जल पहुचाना एक कठिन समस्या है। इस कारण पर्वतीय क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा अधिक जल उपलब्ध होने पर भी केवल 5 प्रतिशत भूमि की सिंचाई हो पाती है। इसलिए बजटे की उपलब्धता पर वर्क प्लान में इनकी स्थापना का लक्ष्य भी रखा जाता है।
हाईड्रम द्वारा नीचे सतह में स्थित नदी नालों, झरनों एवं तालाबों से जल ऊपर उठा कर खेतों तक पहुंचाया जाता है। हाईड्रम द्वारा सिंचाई में डीजल इंजन अथवा बिजली आदि का भी कोई प्रयोग नहीं होता। हाईड्रम द्वारा सिंचाई करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है:-
1. नदी या नाले में आवश्यक मात्रा में पानी का हमेशा उपलब्ध रहना।
2. हाईड्रम मशीन के लिए आवश्यक ड्राप (क्तवच) उपलब्ध होना।
3. हाईड्रम लगाने का स्थान बाढ़ से सुरक्षित हो।
हाईड्रम की कार्यक्षमता उपलब्ध जल मात्रा एवं पानी ले जाने की ऊंचाई पर निर्भर करती है। जब ड्राप अधिक होता है तो डिस्चार्ज भी बढ़ जाता है तथा ऊंचाई बढ़ने पर डिस्चार्ज कम हो जाता है।

   हाईड्रम की विशेषतायें

1. हाईड्रम चलाने के लिए वाह्य शक्ति जैसे मोटर या इंजन की आवश्यकता नहीं होती है।
2. इसके चलाने में तेल व अन्य लुब्रीकेटिंग तेलों की भी आवश्यकता नहीं होती है।
3. मशीन में प्रायः यांत्रिक कठिनाईंया कम उत्पन्न होती है।
4. इसके संचालन में जटिल तकनीकी जानकारी की भी आवश्यकता नहीं होती है।
5. पानी को निर्धारित ऊंचाई तक उठाया जा सकता है।

रखरखाव व सावधानियां

1. हाईड्रम अनेकों वर्ष तक कार्य करता है। इसके लिए आवश्यक मात्रा में पानी उपलब्ध रहना आवश्यक है। आवश्यकतानुसार समय-समय पर पैकिंग या नट बोल्ट आदि की सामान्य मरम्मत करके योजना लगातार चलती रहती है।
2. हाईड्रम मशीन में पानी साफ आना चाहिए। जैसे पत्तियां व बालू रोकने के लिए सप्लाई नाली में जालियां लगायी जानी चाहिए जिससे हाईड्रम में पानी छनकर जायें।
3. हाईड्रम मशीन के बन्द करते समय इनटेक पाईप का पानी पूर्णतः बाहर निकाल देना चाहिए।


छोटे बैराज छोटे बैराज

मैदानी क्षेत्र में भूगर्भ जल आधारित सिंचाई साधन:-

मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई साधन:
विभिन्न क्षेत्रों में भूगर्भीय संरचना के बदलाव के कारण भूगर्भ जल श्रोत एवं साधन को दृष्टिगत रखते हुए क्षेत्र विशेष की संभावना के अनुरूप् अलग-अलग तरह के निर्माण होते हैं। ये मुख्यतः निम्न प्रकार के होते हैं।

नलकूप--

नलकूप पानी की निकासी का वह साधन है जिसमें फिक्स पाइप के जरिये जमीन से पानी निकाला जाता है। इसमें पानी उठाने की मशीन डीजल पम्पसंट अथवा विद्युत मोटर होती है। एक पक्की कोठरी तथा एक पक्का डिलीवरी टैंक और थोड़ी पक्की गूल नलकूप के आवश्यक अवयव हैं। इनको बोरिंग की गहराई के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है। 100 मीटर तक की गहराई वाले नलकूप, गहरे नलकूप (Deep Tubewell) कहे जा सकते हैं तथा इससे कम गहराई वाले नलकूप उथले नलकूप (Shallow Tubewell) कहे जाते हैं। । सिंचाई के अन्य साधनों से इनकी तुलना करने पर निजी नलकूप/बोरिंग से सिंचाई की लागत कम आती है। नलकूप कम लागत एवं कम अवधि में पूर्ण हो जाता है एवं खराब होने की दशा में तुरन्त ठीक है पर्यावरण पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

नलकूप नलकूप

आर्टीजन वेल (पाताल तोड़ कुआँ)

यह झरने का ही रूप है, परन्तु यह प्रायः समतल व कम ढाल वाले स्थानों पर पाये जाते हैं। इनको फ्लोविंग कूप अथवा कनफाइण्ड जल प्रस्तर कूप कहते हैं। किसी भी ढालू कनफाइण्ड जल प्रस्तर में भूतल से पन्चर करने पर जल दबाव के कारण बहने वाले झरने को आर्टीजन कहते हैं। सके।

पाताल तोड़ कुआँ पाताल तोड़ कुआँ पाताल तोड़ कुआँ पाताल तोड़ कुआँ

   कार्यक्रम एवं योजनायें ( वित्तीय संसाधन)


जिला योजनाः-जिला योजना के अन्तर्गत सिंचाई गूल, सिंचाई हौज, हाईड्रम, आर्टीजन एवं बोरिंग पम्पसेट आदि का निर्माण/अनुरक्षण किया जाता है।


राज्य योजनाः-राज्य योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कृषकों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराये जाने हेतु सिंचाई गूल, सिंचाई हौज एवं आर्टीजन आदि का निर्माण किया जाता है।


केन्द्रपुरोनिधानित योजना:- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (हर खेत को पानी) में एकल योजना जैसे सिंचाई गूल, सिंचाई हौज एवं छोटे गेटेड वियर के निर्माण हेतु कम से कम 10 हैक्टेयर कमाण्ड क्षेत्र तथा एक से अधिक योजनाओं के लिए कम से कम 20 हैक्टेयर कमाण्ड क्षेत्र तथा 05 कि0मी0 की परिधि के अन्तर्गत कलस्टर के रूप में सिंचाई योजनाओं का निर्माण किया जाता है।


वाह्य सहायतित योजना:- वाह्य सहायतित योजना (नाबार्ड पोषित) के अन्तर्गत सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराये जाने हेतु आर्टीजन कूप एवं वितरण प्रणाली का निर्माण कार्य कराया जा रहा है, जिसमें पर्वतीय क्षेत्र में क्षतिग्रस्त एवं अनुपयुक्त गूलों का पुर्ननिर्माण एवं सुदृढ़ीकरण तथा ड्रिप सिंचाई प्रणाली सम्मिलित किये जाने का प्रस्ताव है।

Source : Minor Irrigation Department, Uttarakhand , Last Updated on 01-04-2024